top of page

सूरज और मै

मै आज भी कश्मकश में हु,

सो जाता है जहाँ, जागता सूरज

दिन रात , कभी यहाँ कभी वहाँ

वो भी बिना थके, बिना हारे

धरती के जनम से ।


मै सूरज का मुरीद,

और लोग कहे मुझे पागल

सूरज की आज भी पूजा

और मुझे जन्मो की सजा


सब रोशनी से चकाचौंद मुबारक

और मै अंधेरे की आरज़ू में

बेकार का फ़सा पड़ा

सूरज भी रोज़ हँसता

और मै जन्मो का प्यासा कुवाँ


वक्त भी हरामी सूरज का ग़ुलाम

शहेनशाह ए आलम, ज़िंदगी को सलाम

कश्मकश ही जन्नत ए ज़िंदगी

कभी इसको, तो कभी वुसको सलाम


मुबारक *अंजाना*


28 views2 comments

Recent Posts

See All

मुबारक की मधुशाला

जिने के लिये बहुत कूछ दर्द उठाता ये भोला बाला, कैसे जिना, कैसे मरना एक प्रश्न कि माला, सब प्रश्नो को निचोड कर लाया मै हालां, कम्बखत जवाबो से कई सवाल उटाती मधुशाला ।। चाहे हो चाय या मधु का हो प्याला ,

bottom of page