जाम उटाते उटाते
- Dr Mubarak khan
- Sep 16, 2021
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आ दोस्त कभी शराब और शबाब की बातें करे हम,
कई सदियाँ बीत गयी, मयखाने में जाम को ऊटाते ऊटाते
क्या राजनीति, क्या बेबसी, क्या बेक़रारी
कौन आएगा तेरे और मेरे साथ
आ बैठे सुकून से, कभी कंधा देने की भी बातें करे, जाम ऊटाते ऊटाते ।।
कैसी कैसी सोच, और कैसे कैसे लोग
अपने ही लोगों पे अन्याय कर, राज करते लोग
ना बदलेगी सोच, ना बदलेंगे लोग, ना बदलेंगी क़िस्मत
आ दोस्त, कुछ दूर साथ चले और बात करे बदलाव की जाम उटाते उटाते ।।
सड़ी हुयी इंसानियत, और सड़ी हुयी निज़ाम
बेकार के शहेंशाह और बरबाद रिआया,
वक्त भी आ टहरा है, और लम्हे बेताब खुदख़ुशी के लिए
चल छोड़ दे पीछे ग़म, दफ़्न कर मायूसी, आ बैठे फिर बात करे जाम उटाते उटाते ।।
कई रंगो में सबको बाठकर, सिखाए खेलने होली,
बात करु मै इन्ध्रधनु की, वो खेले पिचकारी से गोली
कर सौदा हसीन रंगो का, कायनात भी शर्मिन्दा ,
क्या मजहब, क्या जात, क्या अकिदा? आ दोस्त, इंसानियत की बात करे जाम उटाते उटाते ।।
मुबारक *अंजाना*
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