जिने के लिये बहुत कूछ दर्द उठाता ये भोला बाला,
कैसे जिना, कैसे मरना एक प्रश्न कि माला,
सब प्रश्नो को निचोड कर लाया मै हालां,
कम्बखत जवाबो से कई सवाल उटाती मधुशाला ।।
चाहे हो चाय या मधु का हो प्याला ,
मुबारक हो मुझे, जीवन से निचोड कर लायी हाला,
न जाने क्या क्या सितम उठायेंगे ये पीनेवाले,
मुबारक हो हर एक को सुकून की मधुशाला ।।
दोस्तो ने बनाया, दोस्ती का एक हसीन प्याला,
हर एक को सदा मुबारक हो दोस्ती कि जलती ज्वाला,
न जाने क्या पिछे छोड जाऊंगा,
हर पल दोस्तो पर जान लुटाती मधुशाला ।।
कैसे कैसे सवाल और कैसे कैसे जवाबो की लाया मै हाला,
सवाल हि बन जाये जब जवाबो की माला,
जीवन का मतलब समजते समजते ऐ दोस्त,
जिते जिते जिंदगी के कई नए रूप दिखलाती मधुशाला ।।
क्या तू क्या मै सब माया का एक कल्पीत प्याला,
धर्म, रंग और जाती पाती पे इंसानो की टूटती, प्यार कि माला,
शुद्र, ब्राम्हण, मुसलमान, अछूत और मुबारक,
सभी को एक ही प्याले मे जीना मरना सिखाती मधुशाला ।।
सो जाता है जब जहा, दुसरे दिन की लाता हु मै हाला,
सोये हुये दुनिया पे, भरता हु मै एक और प्याला,
न जाने कहा ठेहरेगी मुबारक की ये ज्वाला,
बस्स मरते दम तक जीता रहू मधुशाला ।।
सब लोग जब सूर मे गाते किसी एक की माला,
दिल मे उटती कई सवालो कि ज्वाला,
क्या बदलेगा इस किस्मत की रेखा कोई,
लाखो करोडो को, दुसरे दिन जीवन जिने का बहाना देती मधुशाला ।।
जिंदगी के कई रंगो से भरा मेरा प्याला,
इंसानो के दिल ही अब बहुत हो गया है काला,
क्या क्या रंगो कि होली खेलेगा तू ,
कभी होली तो कभी दिवाली मनाती मेरी मधुशाला।।
पिना तो एक बहाना था, उटा लाया मै जीने कि हाला,
वक्त बिता, चैन डूबा, जिने कि जलाई मैंने फिरसे ज्वाला,
न जाने क्या क्या सीतम उटाते सब ,
जिंदगी ही को जीने का अंदाज वहां सीखाती मधुशाला।।
जब थकके, जिंदगी कि थंडी होती है ज्वाला,
न जाने कहा से आता है, आशा का एक प्याला,
इंसानो का खून चुसते, इन्सान यहा सब,
हर खून को उसका रंग याद दिलाती मधुशाला ।।
सो जाता है जब जहा, खत्म होती कई उमिदो कि हाला,
जला लेता हूं मै, कयी बीते पलों की ज्वाला,
जीना है तो जी मुबारक,
जिने के बहुत सारे रास्ते दिखाती मधुशाला।।
न पीनेवाले, न जाने क्या क्या जहर पी के सो जाते है,
न दोष दो इस प्याले को, दोष देना है तो इंसानो को,
उजडते है इन्सान, हर दम नेकी सिखाती मधुशाला।।
नाली मे गिरे पीकर , फित्रत ही नही हमारी मुबारक,
किस किस सोच से भर लाया मै प्याला,
हाला और प्याले को खामका रुसवा न कर ,
पिने और खुशरंग जिने का अंदाज सिखाती मधुशाला ।।
पीना तो एक बहाना था,
कोई धर्म का, तो कोई जाति भेद का बनाता प्याला,
सब खून को खून से मिलाता रहता मुबारक ,
न जाने, कई सदियों से, रोज वहीं सीखाती मधुशाला ।।
___ मुबारक खान "अंजाना" ___
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