कश्मकश ए ज़िंदगी
*दुनिया भी देखी नहीं अभी,*
*ना जाने किस बोज तले, दुनिया छूट गयी !*
*वक्त को समजा भी नहीं अभी,*
*ना जाने किस अंधेरे में उजाले की किरण छूट गयी मुबारक !!*
*कारोबारे दुनिया की हरपल विवशता ,*
*ना जाने किस किस विवशता में लूट गयी ज़िंदगी !*
*कभी तो टहरो, कभी तो लम्बी सांस लो,*
*ना जाने किन किन कश्मकश ए ज़िंदगी में, जीने राह छूट गयी मुबारक*
*क्या पावोगे, नोटोकी थप्पिया लगाके,*
*कभी तो रुक जा बेकार की भागदौड़ में, ए बंदे !*
*ना चैन, ना सुकून, ना नींद, सबक़ुच पाके,*
*ना जाने क्यूँ और कैसे रात की गहरायी में, सुकून का साया छूट गया मुबारक*
*आ मिल बैठ के, इतमीनान से गुफ़्तगू करे कभी ए दोस्त,*
*फ़ितरत के नज़ारे, कुदरत के करिश्मे, खो जाए कभी इनमे !*
*पैदा हुए क्यूँ, जी रहे क्यूँ, आ समजे कभी ए दोस्त,*
*ना जाने मौत दबे पाव कब आ जाए अंजाने पल में, फिर पछताने का मौक़ा मिल ना पाएगा मुबारक !!*
~ मुबारक *अंजाना*
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