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Writer's pictureDr Mubarak khan

कभी सोचा न था !!

ज़िंदगी इस मकाँ पे ले आएगी, सोचा न था

कफ़न खुदका हम उटाएगे, कभी सोचा न था

कंधा भी ना मिले क़ब्रिस्तान के राह पे मुबारक

जीने के रंगरलियो में, कहा कब मैंने ये सोचा था


काहे की क़िस्मत, काहे के भगवान

काहे की शोहरत, काहे की नफ़रत

बस, अकेले आना और चले जाना है,

ज़िंदगी इस कधर रुलाएगी, कभी सोचा न था


काहे के अच्छे और काहे के बुरे क़र्म

काहे के ऊँचे महल, काहे का बेघर

बस कुछ दिन की आंक मिचौली है

ज़िंदगी, इस तरह वाकिया बयान करेगी, कभी सोचा न था


काहे के दोस्त, काहे के दुश्मन

काहे की दुनिया, काहे की जन्नत

आज है और अभी है जीने के पल

ज़िंदगी इस कधर बेवफ़ाह हो जाएगी, कभी सोचा न था


बदलते दुनिया के बदलते रिश्ते

ऊँच नीच की बकवास राजनीति,

कैसे कैसे हवस, और काँच के बेकार रिश्ते

ज़िंदगी कभी अंधेरे सुनसान रात में जल के ख़ाक हो जाएगी, कभी सोचा न था ।


मुबारक *अंजाना*




मुबारक *अंजाना*

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