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अच्छे दिन…इंतजार ही सहीं

अमा यार, बस हो गए अच्छे दिन…

लौटा दो वो हमारे बूरे दिन…..

जी लेंगे ख़ुशी से फिरसे….

थोडा कम में ही सही….


जब कुछ भी ना था मेरे पास..

बस तु था मेरे संग , मेरे दोस्त

आज रंगो में बाट दिया, सबको

आज रंगो की क़ीमत ही जियादा सही


ख़्वाबों के कयी महल, अच्छे दिन !

दो वक्त की रोटी को तरसते , फिरसे कयी दिन

आज कुछ कहना चाहता हु…

बेकार की ज़ंजीरो में ढकेली, मासूम ज़िंदगी ही सही


क्या पावोगे, इंसानियत को बाटके रंगोमें

जब चाह है, बस दो पल ख़ुशी से जीने की

कैसी कैसी गन्धी राजनीति मुबारक

हँसी ख़ुशी मौत को चूम लू, इरादा भी निकम्मा सही


क्यों नफ़रतों सी भरी दुनिया बनाये हम

क्यों किसी भी रंगो के रिश्तों में संदेह की जगह रखे हम

इंसान बनके आएथे, इंसान बनके दुनिया छोड़ जावो

काहे की दुश्मनी और नफ़रत, मेरी सोच ही बेकार निकम्मी सही


कितना सोते रहोगे , ए दोस्त

आख़िर क़ब्र में हज़ारों साल सोना है

कैसे कैसे ड़र, कैसी कैसी विवशता जीने की

फ़ितरत की परछायी हम, भूल गए सब, अब बेकार की शराबी की बातें ही सही



— मुबारक *अंजाना*

 
 
 

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1 Kommentar


Dr Prasun Mishra
Dr Prasun Mishra
24. Sept. 2021

well written straight from.heart

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